फ़रीदकोट की जिला उपभोक्ता आयोग (DCDRC) ने मुक़्तसर के एक अस्पताल, डॉक्टर और बीमा कंपनी को मेडिकल लापरवाही के मामलों में दोषी करार देते हुए ₹22 लाख का मुआवजा 45 दिनों में अदा करने का निर्देश दिया है।
पीड़ित की कहानी
गुरप्रीत सिंह, जो कि न्यूजीलैंड में बिजनेस डिप्लोमा कर रहे थे, भारत घूमने आए थे जब उन्हें पेट दर्द की शिकायत हुई। मुक़्तसर के संधू अस्पताल में उन्होंने डॉ. संदीप सिंह संधू से परामर्श किया। शुरूआती अल्ट्रासाउंड में छोटे पित्ताशय के पत्थर की पुष्टि हुई और डॉक्टर ने लेज़र सर्जरी की सलाह दी। लेकिन बाद में उन्होंने बिना गहराई से जांच किए गॉलब्लैडर हटाने की सर्जरी (Cholecystectomy) कर दी।
सर्जरी के बाद जटिलताएं बढ़ीं और मरीज की हालत बिगड़ती गई, जिससे उन्हें लुधियाना के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इससे न केवल उनका स्वास्थ्य प्रभावित हुआ, बल्कि उनका विदेश में पढ़ाई और करियर का सपना भी अधूरा रह गया।
डॉक्टर और बीमा कंपनी का जवाब
डॉक्टर, अस्पताल और ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने शिकायत को पैसे ऐंठने की कोशिश बताया लेकिन आयोग ने उनके दावों को ठुकरा दिया।
फैसले में सामने आईं प्रमुख खामियां:
- डिस्चार्ज समरी पेश नहीं की गई।
- कंसेंट फॉर्म यानी पूर्व-सर्जरी सहमति दस्तावेज़ गायब था।
- जांच पूर्ण हुए बिना सर्जरी करना उचित नहीं पाया गया।
- सर्जरी के बाद कोई फॉलो-अप योजना या रिपोर्ट नहीं दी गई।
- रैफर करते समय मरीज की वर्तमान स्थिति को लेकर कोई रिपोर्ट साझा नहीं की गई।
आयोग ने निर्णय में कहा कि यह मामला चिकित्सा मानकों और मरीज सुरक्षा की पूरी तरह अनदेखी का है। ऐसे मामलों में जवाबदेही सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है क्योंकि ऐसा एक कदम किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है।
हालांकि संबंधित पक्ष उच्च न्यायालयों में अपील कर सकते हैं, पर यह फैसला चिकित्सा लापरवाही पर एक चेतावनी स्वरूप माना जा रहा है।