HP हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई फटकार: सरकारी कर्मचारी होने का मतलब कानून से छूट नहीं!

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ कर दिया है कि सरकारी कर्मचारी होने मात्र से कोई खास कानूनी संरक्षण नहीं मिलता, खासकर तब जब उन पर किसी महिला की मर्यादा भंग करने जैसे गंभीर आरोप लगे हों।

मामला था State of H.P. बनाम अनु बाला एवं अन्य (क्रिमिनल रिवीजन नंबर 148 ऑफ 2025) का। इसमें एक महिला ने आरोप लगाया था कि दो पुलिसकर्मियों ने उसकी जाति के कारण उसके साथ मारपीट की और उसकी मर्यादा भंग की। इस पर ट्रायल कोर्ट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 175 के तहत जांच के आदेश दिए थे।

लेकिन राज्य सरकार ने जांच का आदेश रुकवाने के लिए हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन दायर कर दी, तर्क ये था कि आरोपी सरकारी कर्मचारी हैं, इसलिए उनके खिलाफ इस तरह जांच नहीं होनी चाहिए

हालांकि, न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह की एकलपीठ ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए कहा:

“सिर्फ इसलिए कि आरोपी सरकारी सेवक हैं, राज्य सरकार को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वह ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दे।”

“राज्य सरकार आम नागरिकों और सरकारी कर्मचारियों के बीच भेदभाव नहीं कर सकती। कानून के समक्ष सब समान हैं।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही अपराध किसी नागरिक के खिलाफ हो, वह राज्य के खिलाफ अपराध माना जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राज्य अपने कर्मियों को जांच से बचाने के लिए उसमें हस्तक्षेप करे।

इस फैसले ने स्पष्ट संदेश दिया कि वर्दी या पद किसी को कानून से ऊपर नहीं बनाता — अपराधी चाहे जो हो, जांच जरूर होगी


मुख्य बिंदु:

  • सरकारी कर्मचारियों को जांच से छूट नहीं।
  • धारा 14 के तहत सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं।
  • राज्य सरकार को अपने कर्मचारियों को कानूनी कार्रवाई से बचाने का विशेष अधिकार नहीं।
  • पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अब जांच ज़रूर होगी।

मामला: राज्य बनाम अनु बाला एवं अन्य

निर्णय की तिथि: 31 जुलाई 2025

याचिकाकर्ता की ओर से वकील: श्री वरुण चंदेल

इस ऐतिहासिक फैसले ने ना सिर्फ कानून की समानता को दोहराया बल्कि यह भी साफ किया कि कोई भी व्यक्ति—चाहे वह किसी पद या शक्ति में हो—न्याय की प्रक्रिया से ऊपर नहीं है

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